उधर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने बृहस्पतिवार को ब्लैक फंगस बीमारी के बढ़ते मामलों को लेकर अधिकारियों एवं विशेषज्ञों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की। इस बैठक में उन्होंने कहा कि हमें इस बीमारी को बढ़ने से भी रोकना है और जिनको ये बीमारी हो रही है उन्हें जल्द से जल्द बेहतर इलाज देना है। इस बीमारी की रोकथाम और इलाज के लिए बैठक में कुछ अहम निर्णय लिए गए जिसमें-
1- ब्लैक फंगस के इलाज के लिए LNJP, GTB और राजीव गांधी अस्पताल में सेंटर बनाए जाएंगे।
2- इसके इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं का पर्याप्त मात्रा में प्रबंध किया जाएगा।
3- बीमारी से बचाव के उपायों को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाई जाएगी।
इसके तहत दिल्ली सरकार जल्द ही काम भी शुरू कर देगी। अधिकारियों को जिम्मेदारी दी जा रही है कि वो इस पर फोकस करते हुए काम करें।
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दरअसल कोरोना संकट के साथ ही राजधानी दिल्ली सहित एनसीआर में म्यूकोरमायकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। डाक्टरों के मुताबिक इलाज में देरी होने पर इस बीमारी से बचना मुश्किल होता है। दिल्ली सहित एनसीआर के अस्पतालों में अभी तक करीब 350 मरीज भर्ती हो चुके हैं। इससे ब्लैक फंगस को लेकर स्थिति चिंताजनक हो गई है। डाक्टरों का कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में मरीज भर्ती होने से दवाई की भी कमी हो गई है। इसलिए म्यूकोरमायकोसिस से निपटना चुनौतीपूर्ण हो गया है। इस बीमारी से हाल ही में कई मरीजों की मौत भी हो चुकी है।
हालांकि इस बीमारी के मरीज कोरोना की पहली लहर में भी मिले थे। लेकिन तब उनकी संख्या कम थी। इसलिए दवाई की कमी नहीं हुई। बीमारी पहले की तरह ही अधिकतर डायबिटीज (मधुमेह) से पीडि़त मरीजों को ही हो रही है। इनमें अधिकांश वे मरीज हैं जो कोरोना संक्रमित होने पर आइसीयू में भर्ती रहे हैं या उन्हें ज्यादा स्टेरायड दिया गया है। इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हुई है। आज भी यह बीमारी उन्हीं मरीजों को हो रही है जिनकी डायबिटीज या कोरोना संक्रमित होने से रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है।
बीमारी के लक्षण के तौर पर नाक से खून के साथ पानी गिरना, आधे सिर में दर्द रहना, नाक और आंख में सूजन, दांत में दर्द आदि होते हैं। एम्स में नाक, कान, गला (ईएनटी) विभाग के विभागाध्यक्ष डा आलोक ठक्कर का कहना है कि इस बीमारी के लिए सही शब्द म्यूकोरमायकोसिस ही है। ब्लैक फंगस सही शब्द नहीं है। उनका कहना है इससे पहले म्यूकोरमायकोसिस के साल भर में 20-25 मामले आते थे। लेकिन फिलहाल एक सप्ताह में ही 100 से ज्यादा मरीज एम्स में आ चुके हैं।
प्रतिदिन 20-25 मरीजों को देख रहे हैं। इनमें अधिकतर मरीजों की डायबिटीज अनियंत्रित है। साथ ही इन्होंने स्टेरायड का ज्यादा सेवन किया है। इन सभी का यहां इलाज चल रहा है। वहीं, तीन मरीजों के दिमाग तक बीमारी पहुंच गई तो उनकी भी सर्जरी की तैयारी की जा रही है। इस बीमारी के इलाज में कम से कम एक महीने का समय लगता है। यह बीमारी नाक से शुरू होकर आंख और फिर मस्तिष्क में पहुंचती है। नाक और आंख तक पहुंचने तक मरीज के ठीक होने की पूरी संभावना होती है। लेकिन मस्तिष्क में पहुंचने पर बहुत कम संभावना रह जाती है।